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राजीव उपाध्याय, DAMOH. दमोह के सागर नाका बायपास पर लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल की प्रतिमा का अनावरण करने के लिए गुरुवार को झारखंड के राज्यपाल रमेश बैस दमोह पहुंचे। जहां उन्होंने ने कुर्मी क्षत्रिय समाज को संगठित होने की बात कही।
समाज को संगठित करने की सोच सभी में हो
आज कुर्मी समाज देश की इतनी बड़ी समाज है। मुझे गर्व है कि मैं कुर्मी समाज का बेटा हूं। आप सभी में भी यह सोच होनी चाहिए कि मैं समाज को संगठित करूंगा। देखने में आता है कि जब चुनाव होता है चाहे जिले का हो, प्रदेश का या राष्ट्रीय स्तर का जैसा राजनीति में प्रचार होता है वैसा प्रचार अब लोग समाज के चुनाव में करने लगे हैं। समाज के पदाधिकारी को कोई लाभ नहीं होता ना तो उसे लाल बत्ती मिलती है। वह तो अपने पैसे खर्च करके समाज की सेवा करता है, लेकिन समाज में ही कुछ लोग टांग खींचने में लगे हैं। उन्होंने कहा कि जब समाज संगठित होता है, तो समाज को किसी के पास जाने की जरूरत नहीं होती। जिसको आपकी जरूरत होती है वह आपके पास आता है इसलिए वो ताकत हमें बनानी पड़ेगी। मुझे विश्वास है कि दमोह की समाज के सभी लोग जागरूक हैं और वह समाज के विकास के लिए आगे बढ़ेंगे। उन्होंने कहा यदि समाज संगठित होता है, तो समाज को किसी के सामने हाथ फैलाने की जरूरत नहीं। जिसको आपकी जरूरत होगी वह खुद आपके पास आएगा।
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व्यक्ति नहीं उसका कार्य होता है सर्वोच्च
राज्यपाल ने कहा कि काम करने वाले दिन रात नहीं देखते और काम नहीं करने वाले हमेशा बहाने खोजते हैं । व्यक्ति सर्वोच्च नहीं होता, उसका कार्य बोलता है । दुनिया में कई लोग आते हैं और चले जाते हैं। कोई किसी को याद नहीं करता, लेकिन जो देश धर्म और समाज के लिए करता है उसे लोग हमेशा याद करते हैं। सरदार वल्लभभाई पटेल उन्हीं में से एक है। उन्होंने कहा कि यदि देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चाहते, तो सरदार पटेल की अष्टधातु की प्रतिमा भी बनवा सकते थे , लेकिन उन्होंने लोहे की प्रतिमा बनवाई, क्योंकि देश और दुनिया उन्हें लौह पुरुष के नाम से जानती है । दमोह में समाज ने अपने खर्च पर यह प्रतिमा बनवाई है, मैं समाज का धन्यवाद करता हूं।
इसलिए लगाते हैं भगवान और महापुरुषों के चित्र
राज्यपाल ने कहा कि लोग अपने घरों में भगवान की और महापुरुषों की फोटो लगाते हैं, ताकि हम उनके आदर्श पर चल सके। भगवान ने धर्म के लिए अवतार लिए और धर्म की रक्षा की। सरदार पटेल ने देश के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर कर दिया। उन्होंने कहा कि भगत सिंह 18 साल की उम्र में फांसी पर चढ़ गए, क्योंकि उन्हें पता था कि देश को आजाद कराने के लिए उनकी आहुति जरूरी है। आज के समय में देश की स्थिति को देखकर हर कोई चाहता है की भगत सिंह जैसे योद्धा पैदा हो, लेकिन सब यही चाहते हैं कि वह मेरे घर नहीं दूसरे के घर पर पैदा हो। राज्यपाल ने कहा की छोटी सी बात पर समाज को दोष दिया जाता है। चुनाव होता है, तो समाज को दोषी ठहरा देते हैं, जबकि यह कोई नहीं सोचता कि आपने समाज के लिए क्या किया है, जबकि यह बात सच है कि जिन्होंने समाज के लिए कुछ किया है, उन्हें समाज हमेशा समर्थन करता है।